आखिर क्या हैं यह जिंदगी ??
एक कागज़ की कश्ती ,
संभलती, गिरती, फिर भी चलती !!
साहिल पर रूकती.. टकराती ...
लहरों के साथ चलती,
कागज़ की कश्ती!!!
कभी गिर जाती तो,
दो मासूम हाथों के बीच,
गर्माहट पाती,
और फिर गहरे पानी में गोते लगाती,
कागज़ की कश्ती!!!
कभी निर्लज, कभी सहज,
संबल और सहनशील,
फिर भी नाज़ुक गीला कागज़,
कभी रुकी हुई शांत,
बिना किसी आहट,
जिंदगी !!!
कहीं सूरज की तरफ जाती,
मंजिल को तराशती,
पानी में लकीरें बना के,
पत्थरों को चूमती हुई,
जिंदगी ..जिंदगी......
जब अस्तित्व खो जाएगा,
तब पहुंच हो जाएगी तरल पे,
जहाँ होगा अंतर का आभास,
एक मोक्ष और उसका एहसास !!!!
स्वाति शोभा सेवलानी
एक कागज़ की कश्ती ,
संभलती, गिरती, फिर भी चलती !!
साहिल पर रूकती.. टकराती ...
लहरों के साथ चलती,
कागज़ की कश्ती!!!
कभी गिर जाती तो,
दो मासूम हाथों के बीच,
गर्माहट पाती,
और फिर गहरे पानी में गोते लगाती,
कागज़ की कश्ती!!!
कभी निर्लज, कभी सहज,
संबल और सहनशील,
फिर भी नाज़ुक गीला कागज़,
कभी रुकी हुई शांत,
बिना किसी आहट,
जिंदगी !!!
कहीं सूरज की तरफ जाती,
मंजिल को तराशती,
पानी में लकीरें बना के,
पत्थरों को चूमती हुई,
जिंदगी ..जिंदगी......
जब अस्तित्व खो जाएगा,
तब पहुंच हो जाएगी तरल पे,
जहाँ होगा अंतर का आभास,
एक मोक्ष और उसका एहसास !!!!
स्वाति शोभा सेवलानी
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